ghalib shayari in hindi : gulzar shayari in hindi

 



ghalib shayari in hindi : gulzar shayari in hindi


खुशबू समेत कर रख लेना 

कोई रिस्ता तुमसे बिखर जाये 

कोशिश सच्ची सी कर लेना 

क्या पता रिस्ता वो सबर जाये ||


दिल ने किया था 

जिसपे एतबार था तू 

हासिल नहीं था जिसका 

वो इंतजार था तू ||


दूर हमसे कही न जाना

फैसले एतबार खोते है 

यु इक प्याली चाय से 

रिश्ते भरोसे के बोते है ||


जख्मी रिस्तो के हिफाजत 

सच्चे दिल से ऐसे हरदम हो 

कभी मुहब्बत की नरमी 

कभी लफ्जो का मरहम हो ||


अपनी नजर में पूरे थे हम भी 

बदले नहीं तेरी तरह हम भी ||


तुमसे मिल जाये मुलाकात का एक नजरिया 

तो आजयेगे हम पर करके कोई भी दरिया 

तू मुस्करा के एक बार बुला तो ले 

आगे के इश्क़ का निकल लेंगे कोई भी जरिया ||


न जाने किस बात पे नाराज है बो

ख्वावो में मिलने पर भी बात नहीं होती ||



पानी से तस्वीर कहाँ बनती है 

ख्वावो से तकदीर कहाँ बनती है 

किसी को चाहो तो सच्चे दिल से 

क्युकी ये जिंदगी फिर कहाँ मिलती है ||


जी करता है साथ साथ चलते रहे 

सफर यु ही काटता रहे ||


मसरूफियत में भी ख्याल करे 

कुछ फुर्सत के पल भी गुजरे ||


मन करता है कोई धुन गुनगुनाये 

साथ मिल कोई गीत गाए||


वक्त साथ हो गुफ्तगू होती रहे 

हर लम्हा तू साथ चलता रहे ||


डर है कही छूट न जाये सफर हमारा 

खुदा बना रहे साथ हमारा ||



छत पर निकल आया वो इंतजार करते करते 

चाँद यू भी निकलेगा सोचा न था हमने ||


आकर देख लो मेरी आँखों में

तेरी तस्बीर के सिवाय को नजारा नहीं 

खो गए है हम तेरे इश्क़ में इस कदर 

तेरे नाम के बिना कोई गुजरा ही नहीं ||


खुद न रूठो और सब को हँसा दो 

यही राज है जिंदगी का 

जियो और जीना सीखा दो ||


बेताब तमन्नाओ की कसक रहने दो 

मंजिल को पाने की तलब रहने दो 

आप चाहे रहो मेरी नजरो से दूर 

लेकिन अपनी झलक मेरी आँखों में रहने दो ||



शर्दी हो या गर्मी हो पर ये बरसात रहने दो 

याद करो , बात करो , पर अब मुलाकात रहने दो 



हम भी आधे और तुम भी अधूरे हो गए 

न जाने कैसे सपने उसके पूरे हो गए 

माँगा तो दिन रात रब से हमने था 

न जाने क्यों अब तुम उसके हो गए ||


जब बो सजती सबरती है

पूरी कायनात निखर जाती है 

निगाहे बस उसी पे होती है 

दिल से आह निकल जाती है ||


 

एक मुद्दत के बाद , उनसे मुलाकात की 

आँखों में उसके वही शिद्दत थी 

हाल तो पूछते पर क्या करे लफ़्ज़ों को दिक्कत थी 

अब वो किसी के दरवाजे की इज्जत थी 



उसने कहा ये इश्क़ के चश्मे को उतारो 

तो दुनिया असली किरदार में नजर आएगी 

ये नकाब ही तो है बरना 

हर चेहरे पर कालिख की धूल जम जाएगी 

ये चमक दमक ये रोशन हवेली    

बिना छलावा के बीरान बन जाएगी 



तुमसे ही खुशियां तुमसे ही दर्द

समझ नहीं आता मुहब्बत का कैसा है ये मर्ज

मुहब्बत के यू तो निभाता हूँ सारे फर्ज 

नहीं उतार पाता मुहब्बत का कर्ज


उस पर नजर क्या पड़ी , वो आँखों में बस गयी

फिर क्या था सुकून , चैन सब मेरा ले गयी ||








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