Hindi Poem/ Beti / बेटी
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बेटियां चली जाती है अपनी अस्मिता दे कर
हवसी दरिंदे रह जाते है सरकारी दामाद बन कर
चिकन मटन करी तोड़ते है हम आम जनता के खर्चे पर
४ बर्ष बाद छोड़ दिए जाते है , नाबालिक समझ कर
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बस खून का घूट पीकर रह जाती है वो बेबस माँ
जली हुयी बेटी की लाश को जवाव देती है वो बेबस माँ
चार मोमबत्तियां और कुछ सहनुभूति के कर्ज में डूबती है वो बेबस माँ
हर एक पल जीते जी मौत को अनुभव करती है वो बेबस माँ
अफवाह मात्र पर निकल आती है बेरहमी लाठियां
और बेगुनाह धड़ से अलग कर दी जाती है उसकी उंगलियां
आज तो जिन्दा जल रही है निर्दोष निर्मम बेटियां
क्यों नहीं निलती अब sp साहब की रिवाल्वर से गोलियां ?
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नारी सम्मान और सुरक्षा के झूठे वादे किये जाते है
मन की बात और कुछ जुमले दिए जाते है
हवस के पुजारियों इंसानियत का कर दिया है बुरा हाल
स्त्री जाति कराह रही है तुम्हारे अत्याचार से ,
मानवता शर्मशार है तुम्हारे व्यबहार से ,
उम्मीदों का जलता दीप बुझा कर जश्न मानते हो
इंसान तो नहीं हो , पशुता की मुहर लगते हो
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